खुद को discipline मे रखो | Keep yourself discipline | Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj - podcast episode cover

खुद को discipline मे रखो | Keep yourself discipline | Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj

Jun 07, 202527 minSeason 8Ep. 2
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खुद को discipline मे रखो | Keep yourself discipline | Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj


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Transcript

मन को विचार के द्वारा दोष पैदा करके या इधर राग पैदा करके प्रभु की तरफ हटाओ, दूसरी बातें नियम की बड़ी मार मन पे पड़ती है मन को मारने के लिए नियम का बहुत। पालन करना जरूरी है। आप अपनी दिनचर्या ऐसी बनाएं या गुरुजनों से जो पास हुई दिनचर्या आपके पास प्रातःकाल से शयनकाल तक 1 मिनट भी खाली नहीं होना चाहिए, ये आप देख लो। जो अभी तक चर्चा हुई वो पूरे संसार में दोष दृष्टि करके भोगों के प्रति या प्रभु पे महत्त्व बुद्धि करके छोड़ दो। राग छोड़ो वास्तविक कहे सुख नहीं आप लोग देख लीजिए, विवेक से देख लीजिए।

अभी तक सब वही करते रहे। जन्म जन्मांतर अब हमको मन की ये जो बलवान वृत्ति है परमथन स्वभाव वाली व्रती इस पर अंकुश करना है।

कैसे करना है? प्रातःकाल जगने से लेकर सैन तक 1 मिनट भी आपका खाली नहीं होना चाहिए। आपकी दिनचर्या में होना चाहिए, नियमित दिनचर्या बनवा लीजिए या बना लीजिए अपने बड़ों से अपने पूज्यजनों से पास हमारी ये दिनचर्या जीवन में उसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए था, ऐसी दिनचर्या नहीं, कागज वाली दिनचर्या नहीं। आपकी वास्तविक दिनचर्या जो है, वही होनी चाहिए। जीस समय जो आदेश हुआ है कार्य का आपको उसी समय वही कार्य करना है। इससे मन तुम्हारा मरेगा। मन के अनुसार यहाँ क्या है कि। रोज़ सुनते आज नहीं सुनेंगे।

सत्संग क्या है? सुबह तक रोज़ वाणी पाठ नहीं जाए। 6:00 बजे तक सो रहे हैं शाम के रात्रि तक या जी सर ये ठीक नहीं चलो आज ऐसा कर लेते नहीं ठीक नहीं। जो नियम दिया गया वैसे ही चलो। अगर नियम से चलोगे तो फिर लाभ

क्या मिलेगा? एक तो परमानंद की तरफ बढ़ रहे हो, दूसरी बात आपका मन मरेगा, मन नियम से मरता है, इस मन का स्वभाव बदल जाएगा यदि आप नियमवर्ती बनोगे नियमानुवर्ती से। मन आपके अधीन होगा। नियम बनाओ आप नियम अगर आपने नहीं बनाया तो परमार्थ की चढ़ाई पर नहीं चढ़ सकते हो। परमार्थ में आज तक उसी को लाभ मिला है जो नियम से चला है। किसी ने पूछा किसी से की क्या नियम है?

आपके तो उनका हमारे संप्रदा में तो नियम है ही नहीं। गजब की बात कह दी यहाँ का जो नेम है वो प्रेम से शासित है। प्राण चले जाएं पर वो नेम छोड़ सकते हैं। देखो ना मान क्रम वचांत त्रिशोध सकलमत नेम नहीं है जो आप कह रहे हैं उसी के अनुसार जीवन चलाना है। प्रिया लाल के सुख का नेम प्रिया लाल के नाम जब का नेम। हमारे यहाँ कोई नियम नहीं, मतलब खाओ, पीओ पड़े रहो केवल ऐसे आप समझो समझ के बोलो ऐसे किसी को मत बोलो। परमार्थ में आज तक जीसको भी लाभ मिला है और नियम से चलने वाले को प्राप्त हुआ है।

इस्त आराधना में जो जो आपको नियम मिले हैं, उनमें शिथिलता नहीं होनी चाहिए और बहुत काल तक एक नियम में चलने वाले को सिद्धि प्राप्त हो जाती है। जीस स्थान पर जीस आसन पर जीस समय पर जो मंत्र जितना। वो नियम होना चाहिए। ऐसा नहीं कि आज 20 माला जप लिया तो कल 10 माला जप कर लिया तो 2 दिन जपा ही नहीं, फिर आगे ऐसे नहीं होता। एक नियमानुवर्ती। 5 मिनट का भी अंतर आपके नियम में जब नहीं पड़ने लगेगा। नियमित नियत समय ये संतों में देखा गया है। जय बजे उठना, जय बजे क्षण जय बजे

उनकी जो दिनचर्या 1 दिन अगर देख लो तो दूसरे दिन तुम कह सकते हो। इस समय ये ये साधन कर रहे होंगे क्योंकि उनका नियम?

वो ऐसे मिलेंगे बड़े बड़े महापुरुषों में देखा गया ये 2:00 बजे के जगने का समय तो मतलब जैसे लगभग लगभग विषय पुरुष होते हैं। ऐसे लगभग लगभग जो भागवत प्राप्ति की लगन वाले साधु 2:00 बजे जग जाते सब ये नहीं कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हमने देखा है। गंगा के किनारे जैसे 2:00 बजे शुरू हो जाता है कुआं से जल, चना और सब दिनचर्या गंगा नहाने के लिए फिर जाना, बाद में यहीं से स्नान करके फिर बाद में गंगा स्नान करने जाना जो अनियमित साधन करता है साधन अविनाश ही पर मन मरेगा नहीं।

मन आधीन नहीं होगा, ध्यान रखना अनियमित नियमित आज 1 घंटे बैठे, कल 30 मिनट बैठे, परसों 10 मिनट और फिर आगे बैठे ही नहीं दो 4 दिन बिलकुल नहीं ऐसा नहीं। चाहे 10 मिनट से शुरुआत करूँ तो 11 होना चाहिए। कभी नौ नहीं होना चाहिए और बार बार दिनचर्या का परिवर्तन नहीं होना चाहिए। मंत्र का परिवर्तन नहीं होना चाहिए। नाम का परिवर्तन नहीं होना चाहिए। खाने पीने का शयन का जगने का बिल्कुल नियत समय होना चाहिए मन को वश में करने के लिए। ये जो लोग ने की जब जहाज से आया चिड़िया की तरह चुनते रहते हैं,

कुछ लोगों को तो देखा है यहाँ तो शासन है, सत्संग में भी बोतल खोलेंगे के गूंट ऐसे थोड़ी थोड़ी देर अरे मर थोड़ी जाओगे अमृत भ्रा भागवत चर्चा उसका पान करो चिड़िया की तरह। कभी ऐसे जेब में डाल जाए। रंगीन पुड़ी योजनाएं होती है ऐसे थैली निकालो, भुजिया दो पानी ऐसे मर थोड़ी जाओगे, एक बार भोजन डाल दो प्राण पोषण होता रहेगा एक बार में से दो बार से ही इसके बाद ज्यादा ये नहीं होना चाहिए की थोड़ा ये पाया थोड़ा वो पाया थोड़ा। प्रसाद में मिले, प्रणाम कर लिया,

ज़रा सा चख लिया, रख लिया और जब प्रसाद पाए तब पा लिया। बार बार खानपान से भजन में विक्षिप्त पहुंचता है। अगर मन को मारना है भागवत प्राप्ति करना है तो खानपान का समय शयन का समय शयन का समय मानो आप। 9:00 बजे से 2:00 बजे तक 9:00 बजे आप सैय्या पर होना चाहिए। 2:00 बजे आप सैय्याद छोड़ ही दो। नींद आई हो या ना हो, इससे कोई मतलब नहीं। नियम सुन नियम यानी आज रात में नींद नहीं आई तो आज सो लेते नहीं, उठो तुरंत आपकी दिनचर्या। अपने लोगों ने अभ्यास जब किया ना तो उसमें ये नहीं कि जग के विचार

करना है कि उठना है। जेब ही घड़ी पर दृष्टि गई। आज तक भगवद कृपा से कभी अलार्म नहीं लगाया बचपन से लेकर अभी तक मिल ही नहीं घड़ी तो अलार्म क्या लगाया घड़ी ले कौन घड़ी देगा?

गरीब किसानों के एक समय निश्चित 510 मिनट के अंतर की बात नहीं करते। तुरंत वस्त्र हटाओ, तुरंत ये नहीं, ओढ़ के ध्यान करेंगे, वो ध्यान नहीं होगा, वो सो जाओगे वो पहले अगर सर्दी के समय हटा दिया, ऐसे खुले बैठो घनी लगेंगी। अब नाम जब करो जितनी देर तुम्हारा नियम हो नहीं तो चलो अपना शौच, स्नान, पवित्रता फिर उस शयन वाले आसन पे ना बैठे। अगर फिर नहा धो करके बैठ जाओगे तो एक नींद पूरी और हो जाएगी उसमें और प्रायः लोग यही करते हैं ना की पहले तो बोले नहाने धोने की जरूरत नहीं, नाम जब कर लेंगे उसी में बैठे।

उड़ के अगर बैठ गए तो सूर्य उदय हो गए। कितने नाम जपा उनको खुद पता नहीं क्योंकि वो कम्बल के उसमें या नहा के जल्दी से उड़ के बैठ गए, फिर सो गए। ऐसी साधना नहीं होती। स्नान करने के बाद फिर आसन में बैठ के बहुत साधारण वस्त। ऐसा नहीं कि खूब गर्म गर्म कम्बल ऐसे उड़ नहीं। ठंडी लगनी चाहिए। शांत आंख खुली ध्यान नहीं करना चाहिए। आंतरिक ध्यान करो आँख मुंडली ना तो में पहुँच जाओगे।

ध्यान पूरा कैसे? जैसे चातक स्वाति की बूंद को निहारता है, भागवत में आया कि कैसे सुरता होना चाहिए। वक्ता के प्रति चातक दृष्टि से देखते हुए एक एक शब्द शरोनेंद्री से वो पान कर रहा है। ऐसे शांत और एक दम देखते हुए सरुता सुई परम सुजान चितरति करें। आपके वस्त्र पहनने का ढंग। चलने का ढंग बोलने का ढंग सात्विक होना चाहिए। सोमवार को अमूकरंग का, मंगल को, अमूकरंग का, बृहस्पति को अमूकरंग का ऐसे चलने की हुई अलग अलग स्टाइल अलग अलग से डालना कब?

अगर भागवत प्राप्ति करनी है तो शातिक शातिक चाल हो शातिक भाषा हो शान्तिक वस्त्रों इनका भी बहुत प्रभाव पड़ता है। वस्त्रों का भी प्रभाव पड़ता है, चाल का भी प्रभाव होता है। अभिमान की चाल देखना छाती में हड्डी हड्डी पर फैला के चल रहे मानू शूरवीर है। हाँ, जांघ में मांग से नहीं है, केवल पहनते पहनते दिखा ही नहीं रहा है ये सब नहीं शक्तिक वृत्ति से चलो शक्तिक कपड़े पहनो। ऐसा नहीं कि अब लालच पहनना है तो। आमुख कंपनी का आना चाहिए, लाल रंग का या पीले रंग का?

कितने का स्वेटर? बोले 1,70,000 का है अपना जीवन शातिर हो? शाक्तिक वस्त्र, भीषा, वस्त्र और हमारा चलना भी शाक्तिक हो। हमारा बोलना भी शाक्तिक होना चाहिए। अब इसके बाद उपासक को देखो ये तो नियमावर्तिता हुई अपने मन के ऊपर हर समय दृष्टि रखनी उपासक शब्द इसलिए है। विषय पुरुष नहीं रख सकता। उपासक को हर समय मन पर दृष्टि रखना है। क्या सोच रहा है? ऐसा क्यों सोच लिया इसने? ऐसा क्यों? ये प्रेरणा क्या हमारा भोजन गलत हुआ? क्या संघ गलत हुआ, क्या हुआ?

पूरी जांच हो रही है। आप सच्ची मानना प्रारंभिक बात तो अलग है कि मनपूर्व नहीं तो ऐसा नहीं है के काम के विषय में सोचने लगे। ये लोभ के विषय ऐसा नहीं है। आपका संग गलत हुआ आपका दर्शन गलत हुआ, आपका गलत श्रवण हुआ भोजन गलत हुआ तो ही हो सकता है। नहीं, ऐसे नहीं कि भागवत चिंतन की धारा में बीच में काम आ जाए, बीच में क्रोध आ जाए। प्रारंभ में तो ऐसा होता है लेकिन आगे बढ़े हुए उपासकों को फिर ये दिनचर्या में अपनी जांच करने क्या गलत हो गया? आज क्या खाया जो हमारे मन में ऐसे विचार आ रहे हैं?

आज किसका संघ किया जो हमारे मन में ऐसे विचार आ रहे हैं? यद्यपि। बड़ा कठिन है मन की जांच करना, क्योंकि हम मन ही बने हुए हैं तो जांच क्या करेंगे? जांच तो वो कर सकता है जो थोड़ा मन से अलग हटाए ना दृष्टाभाव देख रहा है मन को, हम तो मन ही बने हुए हैं, जो चाहता है वो हम चाहते हैं, देखो ना बातचीत से समझ में आता है। आज हमारी ये खाने की इच्छा है। आज वहाँ जाने की इच्छा है तुम्हारी थोड़ी है, मन की है, थोड़ा अलग हट करके देखो फिर उसमें

निर्णय करो, सही है या गलत? जो जो विचारों में आप सपोर्ट दे देंगे, वह मन के संस्कार बन जाएंगे। आप सपोर्ट नहीं देंगे तो संस्कार नहीं बनेगा। ये बहुत खास बात है जब आप भजन में बैठे हो साधन में या चलते फिरते उठते बैठते ये जो शास्त्र विरुद्ध गन्दी स्मरणा दे आप बिल्कुल इसको सपोर्ट मत करना नहीं संस्कार बना देगा फिर वो आपके नचाने पर भी आपको परेशान करेगा। और यदि आप बिल्कुल उदासीन रहे जैसे पागल आदमी पीछे बोलता चला जाए, आप कुछ मत बोलो, वो दूसरी दिशा में चला जाएगा। ऐसे ही मन शांत हो जाएगा आपका ये

आपको आप परेशान मत होना। ये फेकता रहेगा जो उसने जमा किया है फिर शांत हो जाएगा, फिर नष्ट हो जाएगा। उसका विशेष स्मरण नष्ट हो जाएगा। अगर कहीं मन भागवत संबंधी सलाह दे तो उसको दुलार करना चाहिए। सराहना की। वाह आज आपने बहुत सुंदर बात मन आपको कभी कभी अच्छी सलाह और जहाँ आपको बुरी सलाह देने लगे तो फिर उसको देखकर दो कि प्रहूष बढ़कर तुमको ये लगा। प्रभु के नाम रूप से बढ़कर लगा सी अंदर होना चाहिए। बाहर भले मत ऐसे होगे ना वो सुधारने लगेगा। बस ये अच्छे से ध्यान रखो।

जब ये गलत प्रेरणा करें तो या तो एकदम उदासीन हो या फिर इसको डांट लगा दो। प्रभु की तरफ चलना है क्या गंदी बात? अंदर नई नई अभ्यास से मन असत। कार्यों को छोड़कर भगवद कार्यों में लगने लगेगा। धीरे धीरे। जब इसको स्वाद मिलेगा तो पूरा का पूरा ये आपके अधीन होने लगा। ऐसा नहीं है कि मन वश में मन वश में की वश की बात मन की ताकत नहीं होती की विषय में चला जाए। आप करके तो देखो भजन नहीं, ऐसा होता तो पूरा जीवन बर्बाद हो जाए।

फिर? वह मनाई बस में नहीं होता, फिर क्या नहीं ऐसा नहीं पूरे जीवन को पढ़ा है। साधू की सबसे बड़ी पढ़ाई मन की होती है। वह मन को पढ़ता है, पूरे जीवन मन को पढ़ा है, देखा है मन? अब क्या परिवर्तन? अब क्या स्थिति?

अब क्या स्थिति सच्ची मानिए? 1 दिन मन मनमोहन बन करके अनुभव करा देता है, कहीं और अनुभव नहीं होता। इसी में अनुभव होता है निहाल कर देता है। धन्य धन्य कर देता है बस इसकी असत्य। वासनाओं असत्येष्टाओं असत्य प्रणव का आप साथ ना दें तो ये आपसे अलग हो नहीं सकता। ये भगवदानंद में डुबो देगा। इसे अधिक से अधिक भागवत चर्चा सुनाओ। इससे अधिक से अधिक प्रभु की छवि के दर्शन कराओ, देखो। भरो मन में भरो खूब भागवत चर्चा भागवत चर्चा करो प्रभु की श्री विग्रह आप जीस कमरे में सैन करते हो, उस कमरे में कहीं भी कोई

संसारिकता नहीं होनी चाहिए। परिवार की फोटो या किसी? अन्या आकर्षणकारी विभोशाली की फोटो?

ऐसा नहीं या कोई अपने आराध्य देव गुरुदेव संत भगवान एक शिव भागवत प्रेमी महात्मा उनकी संतों की छवि प्रियालाल की छवि जिधर जिधर दृष्टि जाए, भगवद स्मृति में लगा दे उठते बैठते। अपना तो कमरा अंदर से ऐसा ही होना चाहिए। पूरे कमरे में नाम लिख लो राधा, राधा, राधा, राधा, राधा, राधा या लिखी हुई टांग बहुत आपको लाभ मिलेगा। जिधर अब राधा, राधा, राधा, अखंड स्मृति। जो आपका वास्तविक साधन कक्ष हो, शयन कक्ष हो, अगर ऐसा हो जाए तो बहुत बढ़िया है। अन्य का प्रवेश ना हो, कोई भी हो,

सद्गुरु देव के सिवा आराध्य देव के सिवा उसका आप देखना इसका बहुत बड़ा प्रभाव होता है। कई बार इस बात का अनुभव हुआ कि जैसे बाहर मन विक्षिप्त हो गया, किसी बात से, किसी उपासक से और जे भी एकदम जैसे बदली, एकदम बदल गए। व्यक्ति और भजन बड़ी तीव्रता से उन्हें क्योंकि वहाँ परमाणु भजन के वो भागवती कक्ष होता, इसके लिए भाई जी ने भी सावधान किया। अगर ऐसा हो जाए तो असुविधा है तो कोई बात नहीं है। अगर ऐसा हो जाए कि भागवत मार्ग के पथिक का जो व्यास स्थल है जहाँ वो शहन करता है, बैठता है उसमें

सांसारिक पुरुषों का प्रवेश ना हो इसलिए हो सकता शब्द लगाए। परिवार में रहते हो। आप ऐसा झगड़ा करोगे कि हमारे कमरे में ना जाए, कोई रिश्ते नातेदार या अन्य परिवार के साथ कठिन हो जाएगा। अगर हो सकता हो तो भागवत प्रेमी महात्मा के सिवा भागवत भजन करने वाले के सिवा प्रवेश तो आप देखोगे उस कमरे में ऐसी परमाणु आ जाएगी। कि आपका मन वहाँ प्रवेश करते ही भजन में लगने लगेगा, बड़ी शांति का अनुभव होगा। इसे खूब भागवत चर्चा सुनाओ, भागवत चर्चा करो और भागवत श्री विग्रह के दर्शन कराओ। बड़ा लाभ मिलता है इसे आप जहाँ

सैन कर रहे हो सामने अगर अपने आराध्य देव की छवि हो ना। बार बार बार दर्शन का शव और कभी कभी तन्मयता एकाग्रता करती है। अगर सैन का जो तो स्वप्न में वही छवि के दर्शन करते हुए पाया जाता है, एकाग्रता का बड़ा महत्त्व है। अगर आप नाम में एकाग्र करके सो जाओ तो आप देखो जगते समय आपके वही नाम चलता मिलेगा। मन के कहने में कभी अपने आप को मत फंसाओ मन लूभी मन लालची मन चंचल मन चोर मन के मत चलिए नहीं ये पल पल में कुछ और ये भटकाता रहता है। जब तक ये प्रभु की तरफ आपको प्रेरित ना करे तब तक इसको अपना

दुश्मन मान कर इसका विरोध ही करते रहेगा। मन का जैसे अपने दुश्मन के प्रत्येक कार्य पर निगरानी करने वाला दुश्मन के प्रहार से बच जाता है क्योंकि। हर क्षण वह सावधान रहता है, वैसे ही जो पाशक मन पर नजर रखकर इसे दुश्मन के भाव से देखता है, वह सावधान रहता है और मन के प्रहार से बच जाता है। जहाँ कहीं ये उल्टा आपको ले जाने के लिए करें, बस इसकी सुनना नहीं। बिल्कुल इसके विरोध में हो जाना ये बड़ा बलवान है, पर तुमसे बड़ा नहीं ध्यान रखना, ये तुम्हीं से बलवान है तुम्हीं से खा पीके तुम्हीं को पटकेगा अगर इसके

अनुकूल रहे और अगर आप अपने। तो ये इसकी ताकत नहीं आपको गिरा दे, क्योंकि बिना सपोर्ट के आपके कुछ नहीं कर सकता। पक्का आप सपोर्ट मत कीजिए, ये आपका कुछ नहीं बिगाड़ेगा, पर इसका स्वभाव कि एक क्षण में अपने अनुकूल कर लेना जहाँ दिखाया कि हम आपको ऐसा सुख प्रदान करेंगे। जल रहे हो ना, अभी आनंदित हो जाओगे तो आप दस्तखत कर दोगे जी आपके दस्तखत के बिना कुछ नहीं कर सकता। कई बार इससे उपासक को हारना होगा क्योंकि बताया नहीं वो दस्तखत करवा लेगा। पर तुम साहस मत छोड़ना, इसके परास्त करने का सैकड़ों बार हराता

है। सच्चा उपासक वही है कि गिर करके हार करके भी उसको हराने का उत्साह न छोड़े। ये हरा देता है, बहुत बार हरा देता है। क्योंकि पूर्वा व्यासी बहुत दांवपेच जानता है। हमको अपने अधीन कई बार तो ऐसे ढंग से हराता है कि समझ में नहीं आता

कि मुझे हरा रहा था क्या? जब हार गए तब लगता है हाँ हार तो गए इसका मतलब ये हमको हरा रहा था, हिम्मत मत हारना, जीत तुम्हारी होगी। क्योंकि तुम प्रभु के सीधे अंश हो और ये तुम्हारी ताकत से बलवान हो रहा है। दृढ़ता से लड़ो तो दिन दिन तुम्हारा बल बढ़ेगा और मन का बल घटेगा और यदि इसका सपोर्ट करते रहोगे तो इसका बल बढ़ेगा, तुम्हारा घटेगा। तुम इस पर जीस दिन विजयी हो गए तो ये मन मन न रहकर श्री कृष्ण हो जाएगा पर ध्यान रखना ये बहुत चतुर है ये कभी डरवाएगा तुमको फिर अपने अधीन करेगा।

ऐसे ही होता है कभी फुसलाएगा कभी लालच देगा। कभी बड़े सुख का प्रलोभन देगा। परंतु तुम इसके धोखे में मत आना, भूलकर इसका विश्वास न करना, अपनी हिम्मत टूटने न पावे, लड़ने में कमी न होने पावे। इससे लड़ाई लड़नी या हम मन से तो लड़ते नहीं बाहर झगड़ा करते घूम रहे हैं। इसे लड़ो ये बेईमान जो हमको परास्त कर रहा है। अंत में आप देखोगे आपकी आज्ञा पर खड़ा हो जाएगा। हाथ जोड़ आप जैसा आप जैसा ये विश्वासी सेवक बन जाएगा मन को कभी निकम्मा मत रहने दो। अब तो सब हो गया बाणीपाठ भी हो

गया सब 3 घंटे तो कोई बात है नहीं 3:30 बजे शाम को जाना है। 3 घंटे में वो इतना मसाला एकत्रित कर देगा। कि तीन महीने में तुम सत्संग के द्वारा उतना सामग्री नहीं कत्रित कर पाओगे, उसको हराने के लिए बहुत चतुर है। इसको खाली मतलब एक आदमी ने भूत सिद्ध किया, भूत सिद्ध हो गया। भूत ने कहा कि काम बताओ हमें। हम वो काम एक क्षण में कराया और बताओ और क्या बताये, बोले काम नहीं बताओगे तो उठा पटक देंगे तुम्हे हम तुम्हे मार देंगे हम वो जो भूत सिद्ध करने के लिए मंत्र

दिया था वो गुरु के पास गया। बोले महाराज तो कह रहा मार डालेंगे, अगर काम नहीं बताओगे, ठीक है एक लम्बा बांस खड़ा कर दिया। और कहा इस भूत को आदेश करो, इसपे उतर चढ़ो। जब तक हम कोई काम ना बताएं तो यही तुम्हारे ऊपर का बस ऐसे ही मन भूत उठा के पटक देगा। आपको किसी ना किसी विषय में इसको काम बताओ क्या राधे श्याम राधे

श्याम राधे चढ़ते उतरते रहे? नाम में चलते रहो जब और कोई काम होगा तो बताएंगे चलो सेवा कर लो बाड़ी पाठ कर लो नैयला राधे श्याम राधे श्याम राधे श्याम पक्का समझो भूत है मार देगा तुम्हें अगर राधे श्याम रूपी बांस में से चढ़ाओगे उतारोगे नहीं। तो पटक देगा किसी ना किसी विषय में फिर छाती जलेगी, दिमाग खराब होगा, डिप्रेशन में पहुँच जाओगे। ये ऐसे ऐसे कर्म करवा देता है कि लगता है अब भी इसकी जरूरत है। प्रभु के हो के प्रभु का नाम जब करके प्रभु के मार्ग में अभी इसकी जरूरत है, जो तुमने किया जो तुमने

सोचा। जो तुम सोच रहे हो इसकी जरूरत है बहुत सावधान नाम कभी छूटे ना इसको उसमें ये निकम्मा मन बर्बाद कर देता है निकम्मा रहोगे तो इधर उधर की बातें सोचेगा एक और बात बता दे। जब तक नींद ना आवे तब तक लेट करके भजन मत करना। किडनी थोड़ी खराब है तुम्हारी की तुम्हें बैठने में परेशानी अपने लोगों ने ऐसा किया है जैसे रात्रि में है माला लेके बैठ गया अब नींद नहीं आ रही है तब तक माला चल रहा है भजन चल रहा है जब नींद आने लगी धीरे से लेट। माला छाती में रखा है अगलबाग कोई अपने मालामय ही अब लेट करके की

नींद का इंतजार तो नींद तो आए कि नहीं लेकिन ये क्या?

क्या प्रोग्राम आ जाएगा वो आप देख लो। नए साधक सावधान नहीं रहते तो दुर्दशापनी कर लेते हैं। क्रियाएं के दौरान के द्वारा। शयन के समय बहुत सावधान रहने की जरूरत है। दिन भर तो आपको ऐसी सेवाएं मिली हैं, ऐसे साधन मिले हैं जो भगवदानंद में डुबोने के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन जो आपका पर्सनल समय है उस समय आप सावधान रहना। अब आप फुर्सत में लेट के जीव ही फुर्सत, सोच के लेटे के सब हो गया, अब उसका प्रोग्राम अब आपके इधर उधर चित्तवृत्ति फिरो मोबाइल जो पास है तो फिर क्या कहना है?

मन को तो मानो अमृत मिल गया, वो आपको प्रेरित करेगा। जहाँ आपने कोई गेम ये वो नौटंकी नाटकीय जहाँ बस उसको मसाला मिल गया, वो आप काफी है, वो आपको ऐसी जगह पहुंचा देगा की सुबह दिनचर्या में हाजिर नहीं हो पाओगे कहाँ है? वो बोले अभी तो आया ही नहीं वो क्यों मान ने उसको परास्त कर दिया है?

इसलिए नहीं आया बहुत सावधान। ये निकम्मा रहेगा तो बुरी बुरी बातें सोचेगा खास बात है दिनभर सावधान रह सकते हो माना, लेकिन संयम के समय जब आप अपनी शैया पे गए, अब होश ठिकाने रखो, बिल्कुल सावधान। यहाँ थोड़ी तुम्हे सावधान रहने की जरूरत है। अभी तो सावधान आई हो, नहीं तो अभी खड़े हो, तुम्हारे पितर तक हो जाएगी अभी। लेकिन कमरे में सिटकनी बंद और शयन के लिए गए। अब होश में यही होश खो जाते हैं। ध्यान रखना। मन आपसे ऐसी चेष्टाएँ कराएगा, क्रियाएं कराएगा, ऐसा दर्शन

कराएगा, ऐसा सोच आएगा। पूरे दिन की साधना को मटिया प्लेत कर देगा, पोछा लगा देगा हमारी प्रार्थना मान लेना जब तक नींद ना आवे तब तक सोने के लिए आप लेटना नहीं यदि जवान साधक हो। नन्माला हाथ में ऐसे दोनों हाथ कब्जे में है। जवान से नाम अब थक गए, सो गए तो ऐसे सो जाओ। आपकी शय्या परम पवित्र है। अगर घंटा तो घंटा इंतजार नींद का तो पक्का। वो भ्रष्ट कराके रखेगा। पक्का हमारी बात लिख ले। सावधान शयन के समय हर उपासक सावधान उस समय विशेष आवश्यकता आपको भजन की है क्योंकि वो एकांत

है और आपके ऊपर उस समय मन को हावी होने का अवसर मिला इसलिए सावधान। सत्संग को सुना जाए, मनन किया जाए और आचरण में उतारा जाए और इस भूत को हर समय नामरूपी बांस पे चढ़ाते उतारे राधेश्याम, राधा वल्लभ सी हरिवंश, राधा वल्लभ सी हरिवंश।

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